Sunday, 14 September 2014

शायर क्लब और मेरे सरपरस्त हज़रत शमीम फारूकी साहब के इंतकाल पर मेरे ताआस्सुरात

शायर क्लब और मेरे सरपरस्त हज़रत शमीम फारूकी साहब के इंतकाल पर मेरे ताआस्सुरात  
---------------------------------------------------------------------------------------------------
हुआ है रूह पे हालात का असर अब के 
हमीं को काट रहा है हमारा घर अब के 

कहा किसी ने कि हज़रत शमीम अब न रहे 

दिलो दिमाग़ को झूठी लगी खबर अब के 

जहाँ से वापसी मुमकिन नहीं मुसाफिर की

चुना शमीम ने उस राह का सफर अब के 

बिलखता छोड़ गए हैं शमीम फारूकी 

न खुश्क होंगे ये दामान ओ चश्मेतर अब के 

वो जिसने लोगों को मंजिल से हमकिनार किया 

हुआ निगाह से ओझल वो राहबर अब के 

वो एक चाँद सा चेहरा वो चांदनी जुल्फें 

कहाँ तलाश करेगी उसे नज़र अब के 

ज़माना लाख फरिश्ता कहे उसे "हादी" 

यही कहूँगा मैं गुज़रा है इक बशर अब के 

Hua hai ro"oh pe haalaat ka asar ab ke 

humiN ko kaat raha hai hamara ghar ab ke 

Kaha kisi ne ki Hazrat Shamin ab na rahe

dilo dimaagh ko jhuthi lagi khabar ab ke 

JahaN se waapsi Mumkin nahiN musaafir ki 

Chuna shamim ne us raah ka safar ab ke 

Bilakhta chhodh gaye haiN Shamim Farooqui

Na khushk hoNge ye Damaan o chashmetar ab ke 

Wo jisne logoN ko manzil se hamkinaar kiya 

Hua nigaah se ojhal wo Raahbar ab ke 

Wo Ek ChaaNd sa chehra wo chaNdni zulfeN

KahaN talaash karegi use nazar ab ke 

Zamana laakh farishta kahe usey "Haadi"

Yahi kahuNga maiN guzra hai ik bashar ab ke 

Wednesday, 2 April 2014

Chahat e dil hai kisi shokh ka chehra dekho



Chahat e dil hai kisi shokh ka chehra dekho
Aql ki zid hai ki rangeeni e duniya dekho

Waqt par peeth dikhate heN lahoo ke rishte
Kis tarah hota hai apna bhi paraya dekho
Yaad rakkho ki yehi hona hai anjaam e hayat
Jab bhi dhalti hui shamoN ka dhuNdhalka dekho
BaDh ke kar dena kisi bujhte diye ko roshan
Apni aNkhoN se agar door ujala dekho
'Hadi' har samt he ik aalam e nafsa nafsi
Har taraf jese qayamat si he barpa dekho
-----------------------------------------------
चाहत ए  दिल है किसी शोख का चेहरा देखो 
अक्ल की ज़िद है कि रंगीनी ए दुनिया देखो 

वक्त पर पीठ दिखाते हैं लहू के रिश्ते 
किस तरह होता है अपना भी पराया देखो

याद रक्खो कि येही होना है अंजाम ए हयात 
जब भी ढलती हुई शामों का धुंधलका देखो 

बढ़के कर देना किसी बुझते दिए को रोशन 
अपनी आँखों से अगर दूर उजाला देखो 

"हादी " हर सम्त है इक आलम ए नफ़सा नफ़सी 
हर तरफ जैसे क़यामत सी है बरपा देखो