Kiya hai meiN ne us ko darguzar……….......Ahista Ahista
'Sharafat' uski lamhoN meiN nazar meiN aayee thi lekin
Khula hai mujh pe uska raaz e shar.....ii....Ahista Ahista
Mujhe ehsas tak.. ………….apni tabaahi ka na ho paya
Hua zehr e rifaqat ka asar………………....Ahista Ahista
JaDeN andar hi andar.. khokhli kar deeN muhabbat ne
UjaDta hi gaya dil ka shajar…………….....Ahista Ahista
Yahi tha...haaN yehi to tha..kabhi maskan muhabbat ka
Chala dil par mire khanjar……... magar.....Ahista Ahista
Nikal aaye heiN jab aage.. to peechhe mud ke kya dekheN
BichhaD jata hai sabka hamsafar……….....Ahista Ahista
Kise maloom tha "Haadi" ka dushman…....... dost niklega
Hua tha waar meri peeth par.....................Ahista
गिरा मेरी नज़र से वो मगर आहिस्ता आहिस्ता
किया है मैने उसको दरगुज़र आहिस्ता आहिस्ता
शराफत उसकी लम्हों में नज़र में आई थी लेकिन
खुला है मुझ पे उसका राज ए शर आहिस्ता आहिस्ता
मुझे एहसास तक .. अपनी तबाही का न हो पाया
हुआ ज़हर ए रिफाक़त का असर आहिस्ता आहिस्ता
जड़ें अन्दर ही अन्दर खोखली कर दी मुहब्बत ने
उजड़ता ही गया दिल का शजर आहिस्ता आहिस्ता
यही था ... हाँ यही तो था कभी मसकन मुहब्बत का
चला दिल पर मेरे खंजर ...मगर ... आहिस्ता आहिस्ता
निकल आये हैं जब आगे ... तो मुड़के पीछे क्या देखें
बिछड़ जाता है सबका हमसफ़र .... आहिस्ता आहिस्ता
किसे मालूम था “हादी ” का दुश्मन....... दोस्त निकलेगा
हुआ था वार मेरी पीठ पर ....... आहिस्ता आहिस्ता
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