Tuesday, 3 February 2015

तेरा दर ही मेरे पेशे नज़र हो

Mohabbat ka safar aisa safar ho
Jidhar dekhuN teri hi rehguzar ho

Ho lambi zindgi ya mukhtasar ho
Basar ho jaye jaise bhi basar ho

Jhuke ye sar Khuda tere hi aage
Tera dar hi mere peshe nazar ho

Kisi ke saamne daaman na phaile
Zarurat zindgi ki mukhtasar ho

Na hoN sairaab aankheN had se zyada
Na dil sehrayoN se bhi khushqtar ho

Talab itni si hai dewaangi ki
Mujhe uski, usey meri khabar ho

Guneh sarfe nazar hoN dostoN ke
Khata dushman ki "Hadi" darguzar ho

मुहब्बत का सफर ऐसा सफर हो 
जिधर देखूं तेरी ही रहगुज़र हो 

हो लंबी ज़िन्दगी या मुख़्तसर हो 
बसर हो जाये जैसे भी बसर हो 

झुके ये सर खुदा तेरे ही आगे 
तेरा दर ही मेरे पेशे नज़र हो 

किसी के सामने दामन न फैले
ज़रूरत ज़िन्दगी की मुख़्तसर हो 

न हों सैराब आँखें हद से ज़्यादा 
न दिल सहराओं से भी खुश्कतर हो 

तलब इतनी सी है दीवानगी की 
मुझे उसकी , उसे मेरी खबर हो 

गुनह सरफे नज़र हों दोस्तों के 
खता दुश्मन की " हादी " दरगुज़र हो 
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सैराब --- पानी से भरी हुई 
सेहरा --- रेगिस्तान 
सरफे नज़र --- नज़रअंदाज़