Monday 12 December 2011

"आँखों आँखों में गुफ्तुगू होगी"


"आँखों आँखों में गुफ्तुगू होगी"


वक्त होगा न जुस्तुजू होगी  ,        Waqt hoga na justujoo hogi
खाक ही खाक चार सू होगी !        Khak hi khak chaar soo hogi

और क्या पाओगे सराबों में,        Aur kya paaoge saraaboN meiN
रेत , दरिया , हवा भी लू होगी !    ret, dariya , hawa bhi loo hogi

वो हुआ आँख से अगर ओझल ,    Wo hua aankh se agar ojhal    
उसकी तस्वीर कू बकू होगी !        Uski tasveer ku baku hogi

आज आएगा बज़्म में कोई ,        Aaj aayega bazm meiN koyi
आज नीलाम आबरू होगी !          aaj neelam aabroo hogi

होंगी सरगोशियाँ फजाओं में ,      hongi sarghoshiyaN FazaoN meiN
आँखों आँखों में गुफ्तगू होगी !      aankhoN aankhoN meiN guftugu hogi

कोई तो होगा खुशनसीब वो दिन , Koi to hoga khushnaseeb wo din
मेरी आगोश में जो तू होगी !        Meri aaghosh meiN jo tu hogi

कौन ठहरेगा खुआब का कातिल , Kaun thehrega khuwaab ka qaatil
आँख किसकी लहू लहू होगी !      Aankh kiski lahu lahu hogi

ज़िक्र होगा कभू कभू मेरा ,         Zikr hoga kabhu kabhu mera
बात मेरी कभू कभू होगी !          Baat meri kabhu kabhu hogi

आँख में होगा इन्तज़ार तेरा ,      Aankh meiN hoga intezaar tera
दिल में मायूस आरज़ू होगी !       dil meiN mayus aarzoo hogi

जीते जी कौन पूछता है यहाँ ,     Jeete ji kaun puchhta hai yahaN
बाद मरने के हाय हू होगी !        Baad marne ke haay hu hogi

खून छलकेगा जिस घड़ी "हादी ", Khoon chhalkega jis ghadi "Hadi"
आँख उस वक्त बावज़ू होगी !       Aankh us waqt bawazu hogi

Saturday 12 November 2011

Janab Mansur Usmani in my view .....Review

M with Famous Urdu shayar , Famosus nazim e mushayra Janab Mansur Usmani
                                                  A Review
As we know that the Art of poetic writing is a gift of god to the humankind it self, Ghazal primarily is an expression of the anguished love, but people like Meer Taqi Meer, Asad Ullah Khan Ghalib, Hasrat Mohani gave Ghazal a new dimension and it shifted to express philosophy in a new style. Janab Mansoor Usmani sahab is among one of them who stress upon the philosophy of individualism in his format of poetry, likewise in his poetry only romance have not a prominent place yet played a significant role with power and position of individual in all capacities. Mansoor`s poetry didn’t talk alone about the power of powerful but pointed the voice of weak in the same manner.
Janab Mansoor`s approach towards love is not similar with several other poet as his hero didn’t died in the remembrance of his love but get power to care about his self esteem and self respect although his poetry has influence of Ghalib, Shaad and Hazrat Ameer Khusroo but always contradict with the end of the narration,
Janab Mansoor put forward the historical events in romantic wisdom which creates his poetry as spiritual mystic verses.
Dua karo ki salamat rahe hamare kalum
Yazid e wakt ka hamko hisab likhna hai—
At some places Mansoor pointed out the faults of the great people in this modern era and this reality is not a circumstantial condition but a fashion of toady’s life as Mansoor noted
Havi hamesha farz pe masrofiyat rahi
Maa- baap ki bhi apne mai khidmat na kar saka—
Some times this honest person pointed out the reality of love and it’s after effects
As he wrote
Chhupti nahi hain apne chhupane se chahte'n 
Seene mai aag ho to bhadakti zaror hai,,, 
And some times it seems that a communist like Marx, Engles, August Comte or Lenin is talking to its people, the words are as follows
Ajeeb log hain kiston mai mar rahe hain magar
Kisi ke lub pe koi ahtjaj nahin
Wo dard uthata hai aksar jo zindgi ki tarha
Siwae maout ke uska koi ilaj nahi
Janab Mansoor`s personality is the mirror of several qualities as he not only took step towards the upliftment but also he suggest to wage war against the inhuman treatment 
Adab to karte hain hum bhi magar saleeke se
Sabhi se jhuk ke milen ye apna mijaz nahi
He commented on the religious clergies in such manner
Ab jang ho rahi hai ibadat ke naam par 
Kahne ko ahle dahre haram khariyat se hain

So at par Mansoor Usmani has a real gift of Almighty to put forward his multi dimensional thoughts in poetic style, might be possible that I am failed to adjudge his personality correctly but hope that one day a rightly guided person will explain the Mansoor`s qualities better than me 
Regards 
Hadi Javed

Tuesday 11 October 2011

सीमा गुप्ता जी के जन्म दिन के अवसर पर उनके काव्य संग्रह "विरह के रंग " की समीक्षा






                  कहते हैं कि अगर इश्वर को मंज़ूर हो तो पथरीली ज़मीन से भी सब्ज़ा (हरियाली ) उग सकता है खुश्कियों से भी आबशार फुट सकता है .....सीमा गुप्ता इन पंक्तियों को सार्थक करती नज़र आती हैं..फौजी पृष्ठभूमि , अनुशासित परिवार में शायरी का अंकुर फूटना किसी चमत्कार से कम नहीं .....

                सीमा गुप्ता ने कमउमरी में ही हर वह ऊँचाई जिसे देखकर वह विस्मित थी ....अपने पैरों से रौंद दी ...
जब मन की वेदना , लेखनी का माध्यम प्राप्त करती है तो कविता का रूप धार लेती है और जब वही कविता कर्ण स्पर्श करती है तो सोये हुए एहसास को जगा देती है यही मन से मन तक की यात्रा लेखक का मार्ग प्रशस्त करने में सहयोग करती है और सदैव अग्रसारित करती रहती है इन्ही अनगिनत भावों के समावेश से काव्य संग्रह अभिव्यक्ति पाते हैं और साहित्य में अपना स्थान निर्धारित करते हैं ..... सीमा गुप्ता जी की कल्पना शीलता उनकी कविताओं में कहीं सूर्य तो कहीं जुगनुओं की तरह तेजस्वी और कहीं मद्धम उजाले ही बिखेरती है और यही इन्द्रधनुष अपने तेज में प्रकाशित होते हुए आहिस्ता आहिस्ता "विरह के रंग में तब्दील " हो जाता है
"विरह के रंग " में बकौल सीमा जी ..."न सुर है न ताल है , बस भाव हैं और जूनून है लिखने का " को मद्देनजर रखते हुए हमें शायरी के फन और अरुज या व्याकरण को भी नज़रंदाज़ करना होगा ... दिल से निकले भावों को दिल की गहराई से समझकर उसी पर केंद्रित रहना होगा .... उनकी नज्मों और उनकी ग़ज़लों में जो दर्द , कसक, और कराहट है वो पथार्दिल इंसान को भी मॉम बना सकती है ... और दर्द रूपी सागर में हिचकोले खाने को मजबूर कर सकती है "विरह के रंग " में शायरा ने प्रेम और विरह की उस तपिश और जलन का वर्णन किया है जो उसे अंदर ही अंदर भस्म करना चाहती है ....वहीँ दूसरी तरफ वह मीरा और राधा की तरह अपने प्रीतम से बे इन्तहा प्यार करती है ..... प्रेमी की जुदाई भी उसे बर्दाश्त नहीं .... तो प्रेमी के ऊपर इलज़ाम को भी वो बर्दाश्त नहीं कर पाती वो कहती है ....... 
"जब वो चेतना में लौटेगा और
पश्चाताप के तूफानी सैलाब से 
गुजर नहीं पायेगा 
जड़ हो जायेगा 
मैं डरती हूँ बस उस एक पल से ....
इस में नायिका अपने प्रेमी को उस आने वाले पल में भी अपनी मोहब्बत के आँचल में समेटना चाहती है ........ 
अब उसका दूसरा रूप जहाँ वह प्रेमी को चेतावनी देती है .....
ह्रदय के जल थल पर अंकित 
बस चित्र धूमिल कर जाओगे 
याद तो फिर भी आओगे ......
सीमा गुप्ता जी शायरी के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ..... जिनको पढकर अजीब सी कशमकश तारी हो जाती है ......
"रात के पहरों की सारी सौगातें चुनती हूँ 
उलझे से खुवआबों की बस बरसातें चुनती हूँ "

"रास्ता जब बन रास्ते की गली 
मैं जो गुजरी तो धडकन की लय बन गयी 
एक खिडकी खुली और तुम्हें देखकर 
मैं जहाँ पर खडी थी कड़ी रह गयी 
जिंदगी भर यही सोचती रह गयी "

"एकांत के झुरमुट में छुपकर 
मैं द्वार ह्रदय का खोलूंगी 
तुम चुपके से बस आ जाना 
और झाँक के मेरी आँखों से 
एक पल में सदियाँ जी जाना " 

"एक उदासी दिल पर मौत के जैसी थी 
लेकिन अब जीने की ठानी सुनती हूँ"

"बाँहों का करके घेरा 
चौखट से सर टिका के 
और भूल करके दुनिया 
साँसों को भी भुला के 
खोकर कहीं क्षितिज में 
जलाधार दो बुलाके 
मुझे याद किया तुमने या नहीं ...... ज़रा बताओ "

ये वो कुछ अंश हैं इस मजमुए के जिस में शायरा अपनी लेखनी के माध्यम से पाठक के दिल तक पहुचने में कामयाब हुई है ...दिल तक पहुंचना किसी फनकार की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है .....पाठक के दिल तक सीमा जी पहुँचने मैं कामयाब हुई है .......यही उनकी लेखनी का कमाल है ......मेरी तरफ से सीमा गुप्ता जी को बहुत बहुत शुभकामनायें ......
हादी जावेद 

Wednesday 5 October 2011

"इज़हार करूँगा "


मुश्किल ही सही , हाथों को पतवार करूँगा       Mushkil hi sahi, haathoN ko patwaar karuNga
ये जिद है मगर , मुझको नदी पार करूँगा         ye zid hai magar, mujhko nadi paar karuNga



सौदा न करूँगा मैं कभी ज़र्फ का अपने            Sauda na karunga maiN kabhi zarf ka apne
मजरूह न अपना कभी किरदार करूँगा           majrooh na apna kabhi kirdaar karuNga



करता है वफाओं के अवज़ जान का सौदा       Karta hai wafaoN ke awaz jaan ka sauda
तू ही बता , कैसे तुझे इनकार करूँगा             tu hi bata, kaise tujhe inkaar karuNga



माना कि नहीं तुझको , मेरे नाम से निस्बत  Mana ki nahiN tujhko, mere naam se nisbat
ए जाने वफ़ा , फिर भी तुझे प्यार करूँगा       Ae jaane wafa, phir bhi tujhe pyar karuNga



मुझ पर भी तो हो जाये तेरा साया ए रहमत       Mujh per bhi to ho jaye tera saya e rahmat
खुद को इसी हसरत में गुनहगार करूँगा        khud ko isi hasrat maiN gunahgaar karuNga



एक भाई को भाई से जुदा कर दिया जिसने   Ek bhai ko bhai se juda kar diya jisne
एक दिन में ज़मींदोज़ वो दीवार करूँगा         ek din maiN zamiNdoz wo deewar karuNga



रखना है जिसे , रख दे वो तलवार गले पर    Rakhna hai jise, rakh de wo talwar gale par
"हादी " हूँ मैं, हक बात का इज़हार करूँगा    "Hadi" hun maiN, haq baat ka izhaar karuNga

Wednesday 21 September 2011

शायद पनाह दे न सके फिर ज़मीं हमें

ले आई आसमां की बलंदी वहीँ हमें               Le aayi aasmaN ki balandi wahiN humeN
शायद पनाह दे न सके फिर ज़मीं हमें          Shayad panaah de na sake phir zamiN humeN

करवट बदलते जागते रहते हैं रात भर         Karwat badlte jaagte rahte haiN raat bhar
तौफीके बंदगी भी तो होती नहीं हमें             Taufeeq e bandgi bhi to hoti nahiN humeN


माजी को जबसे हमने बनाया है हमसफ़र    Maazi ko jabse humne banaya hai hamsafar
लगने लगे खंडर भी बहुत दिलनशीं हमें       Lagne lage khandar bhi bahut dilnashiN humeN


तस्वीर जबसे देखी है तेरे जमाल की            Tasveer jabse dekhi hai tere jamaal ki
महसूस हो रही है ये दुनियां हंसी हमें            Mahsus ho rahi hai ye duniyaN hansiN humeN


तहजीब इस जहाँ को हमीं ने सिखाई थी       Tahzeeb is jahaN ko humiN ne sikhayi thi
आता नहीं है आज भी खुद पर यकीं हमें        Aata nahiN hai aaj bhi khud per yaqeeN humeN


अपनी शिकस्त भी हुई मक्रो फरेब से           Apni shikast bhi hui makr o fareb se
अफ़सोस ये चलन भी तो आया नहीं हमें       Afsos ye chalan bhi to aaya nahiN humeN


"हादी " किसी कलाम पे पत्थर भी आयेंगे  "Hadi" kisi kalaam pe pathar bhi aayenge
महसूस कर रहा है कोई नुक्ताचीं हमें              Mahsus kar raha hai koi nuqtachiN humeN

Wednesday 10 August 2011

Guzarta raha hun main LYRICS BY HADI JAVED

Pukarta raha hun main ki theme per ek geet likhne ke liye Shair ClubKe member aur mere bhai jaise Shariq Siddiqui sahab ne mujhe ek geet likhne ko diya shariq ki mohabbat ne mujhse is geet ko likhwaya unke chacha jaan Janab Nafees Siddiqui sahab ne behtreen aawaaz se sajaya Roza hone ke bawajud Is geet ko unhone bahut khubsurati se gaya ..... Aur iski graphics Seema Gupta ji ne dekar isko behad khubsurat banaya mere is geet ko ko behtreen aur khubsurat banane ke liye main tahe dil se Shariq siddiqui (Kashipur) Nafis Siddiqui sahab ka shukria adaa karna chahta hun
Bil khusus Seema gupta ji ka shukria bhi adaa karna chahunga ki unhone ise aur zyada khubsurat banakar isey rangeen aur mohak bana diya ...... Shukria Seema Gupta ji

Monday 8 August 2011

Hadi Javed (Nazm) "तुम्हें छू न सका " Voice Seema Gupta

Meri is nazm ko khubsurat Graphics aur khubsurat aawaaz se nikharne ke liye 
Seema Gupta ji ka shukria 
A Lot of Thanks Seema Gupta ji


Friday 5 August 2011

"तुम्हारी यादें , तुम्हारी अँखियाँ "

तुम्हारी यादें , तुम्हारी अँखियाँ                         Tumhari yaadeN, tumhari ankhiyaN
मैं कैसे काटूँगा अपनी रतियाँ                            MaiN kaise kat'unga apni ratiyaN

बहार जोबन पे आ गयी है                                 Bahaar joban pe aa gayi hai
जलें न तुम पर तुम्हारी सखियाँ                       jalen na tum per tumhari sakhiyaN

हवा ने कानों में कुछ कहा है                             Hawa ne kanoN meiN kuchh kaha hai
धड़क उठी जो तुम्हारी छतियाँ                        dhadak uthi jo tumhari chhatiayaN


न डूब जाये ये दिल हमारा                                Na doob jaye ye dil hamara
हैं कितनी गहरी नज़र की नदियाँ                    HaiN kitni gahri nazar ki nadiyaN

इधर भी गुंचे से खिल रहे हैं                               Idhar bhi gunche se khil rahe haiN
उधर भी खिलती हैं शोख कलियाँ                     Udhar bhi khilti haiN shokh kaliyaN

बताओ कब तक मैं राह देखूं                             Bataao kab tak maiN raah dekhuN
गुज़ार दी हैं हज़ारों सदियाँ                               guzaar di haiN hazaaroN sadiyaN

क्यूँ याद आते हैं अब भी "हादी "                     KyuN yaad aate haiN ab bhi "Hadi"
किसी के कूंचे किसी की गलियां                      Kisi ke kuche , kisi ki galiyaN

Tuesday 2 August 2011

"गर यही है जिन्दगी "


"गर यही है जिन्दगी "
आसमां सियाह है                      Aasma"n siyah hai       
और शब उदास सी                   Aur shab udaas si
हर क़दम है तीरगी                  Har qadam hai teergi
चाँद का पता नहीं                   Chaand ka pata nahi'n
चल रहा हूँ बेखबर                  Chal raha hun bekhabar
राह का पता नहीं                    Raah ka pata nahi'n
नींद है उडी उडी                      Neend hai udi udi
ख्वाब बेअमान हैं                   Khuab beamaan hai'n
हर नफ्स हैं उलझनें               Har nafas hai'n uljhane'n
चार सूं है खामशी                  Chaar su'n hai khamoshi
कौन सी ये राह है                   Kaun si ye raah hai
समत क्या है , क्या पता         Samt kya hai, kya pata
ये सफर है किस लिए             Ye safar hai kis liye
किस तरफ है काफिला           Kis taraf hai qafila
मुज्तरिब है रूह भी                Muztarib hai rooh bhi
मुज़महिल है जिंदगी             Muzmahil hai zindagi
गर यही है जिन्दगी               Gar yahi hai zindgi
तो मौत फिर किसे कहें          To maut phir kise kahe'
....तो मौत फिर किसे कहें......To maut phir kise kahe'n......

Wednesday 6 July 2011

"हमीं पर जोर और फिर तानाशाही "

हवा का जोर बढ़ता जा रहा है                   Hawa ka zor badhta ja raha hai
खुदाया क्या ये होता जा रहा है                 Khudaya kya ye hota ja raha hai


सियासत में मचा हुडदंग कैसा                 Siyasat mei'n macha hudhdang kaisa
कहाँ जाने वतन ये जा रहा है                   Kaha'n jaane watan ye ja raha hai


 
हमीं पर जोर और फिर तानाशाही          Hami par zor aur phir taanashahi
वफ़ा क्या है ? सिखाया जा रहा है            Wafa kya hai ? sikhaya ja raha hai


समंदर पर चला है जोर किसका              Samandar par chala hai zor kiska
मगर लहरों को रोका जा रहा है               Magar lahro'n ko roka ja raha hai

हमें अब होश कब आएगा अपना             Hame'n ab hosh kab aayega apna
हर एक लम्हा सिमटता जा रहा है           Har ek lamha simt'ta ja raha hai

मुझे एक जिस्म बख्शा था खुदा ने           Mujhe ek jism bakhsha tha khuda ne
जो अब किस्तों में कटता जा रहा है         jo ab kisto'n mei'n kat'ta ja raha hai

वफ़ा और प्यार क्या होते हैं "हादी"        Wafa aur pyar kya hote hai'n "Hadi"
हमें कोई बताता जा  रहा है                   Hame'n koi batata ja raha hai

Thursday 2 June 2011

मरहूम मासूम नह्टोरी साहब की याद में मुरादाबाद मुशायरा २९ मई २०११

मरहूम मासूम नह्टोरी साहब की याद में मुरादाबाद मुशायरा २९ मई २०११
मरहूम मासूम  नह्टोरी साहब की याद में २९ मई को मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में एक मुशायरा पूलिस अकादमी के सभागार में मुनाक्किद किया गया इतेफाक से मैं उस दिन मुरादाबाद में ही था और फेसबुक पर मैंने अपने status पर लिखा था तो मुझे अकील नोमानी साहब के कमेन्ट से पता चला कि २९ मई को मुरादाबाद के मुशायरे में उनसे मुलाक़ात होगी खैर जब मुझे पता चला कि इस मुशायरे में शिरकत करने के लिए पदमश्री बेकल उत्साही , वसीम बरेलवी साहब, नवाज़ देओबंदी साहब , आलोक श्रीवास्तव साहब  , अकील नोमानी साहब , इकबाल अशहर साहब , शकील आज़मी साहब , सरवत जमाल साहब, अजम शाकिरी साहब, अशोक साहिल साहब , हसन काज़मी साहब , मैकश अमरोहवी साहब, डॉ. सुमन दुबे , डॉ. नुजहत अंजुम साहिबा और तंजो मिज़ा के जनाब एजाज़ पोपुलर मेरुठी साहब और दीगर शोहरा तशरीफ़ ला रहे हैं तो मैंने अपनी वो सुहानी शाम इस खुबसूरत मुशायरे के नाम कर दी रात को मैं जब सभागार में पहुंचा तो महमाने खुसूसी रीता बहुगुणा जोशी जो कांग्रेस की सूबाई सदर हैं तशरीफ़फर्मा थी उनके साथ राजकुमारी रीना साहिबा साबिक वजीर , और मुशायरे की सदारत करने के लिए जनाब ज़फर अली नकवी साहब सांसद भी मौजूद थे वहीँ पर समाजवादी चिन्तक जनाब सयेद सग़ीर साहब , साबिक विधायक जनाब सौलत अली साहब मौजूद थे 
मुशायरे की शमा रोशन इन महमानों ने की उसके बाद मुशायरे की बाजाब्ता शुरुआत मुशायरे के नाजिम जनाब मंसूर उस्मानी साहब ने कराइ जो मुशायरों की दुनिया में अपना एक मुकाम रखते हैं और ऐसा लगता है की लफ्ज़ उनके सामने  हाथ जोड़े खड़े हों वो जब बोलते हैं तो बस माइक सामाइन और उनके अलफ़ाज़ होते हैं मैं जब भी उनको सुनता हूँ हर बार उनकी निजामत में नयापन होता है हर बार ऐसा लगता है की ये नए मंसूर उस्मानी साहब हैं जिन्हें  मैं पहली  बार सुन रहा हूँ उन्होंने सबसे पहले जनाब नवाज़ देओबंदी साहब की नात पाक से की गयी ] 
इसके बाद बहारिया दौर का आग़ाज़ हुआ सबसे पहले मंसूर उस्मानी साहब ने अपने ही निराले अंदाज़ में  जनाब शकील आज़मी साहब को मधु किया गया शकील आज़मी जो कि १५ फिल्मों में गीत लिख चुके हैं बेहतरीन नोजवान शायर हैं और तहत में शायरी करते हैं उन्होंने ऑडिटोरियम में बैठे हुए सामाइन  को एक से बढ़कर एक ग़ज़लों से नवाज़ा सामें उनको भरपूर दाद से नवाजते रहे  उन्होंने कहा ,
"कई आँखों में रहती है कई बाहें बदलती है ,
मोहब्बत भी सियासत की तरह राहें बदलती है ,


इबादत में न हो ग़र फायदा तो यूँ भी होता है ,
अकीदत हर नई मन्नत पर दरगाहें बदलती है"
इसके बाद जनाब मंसूर उस्मानी साहब ने दावते कलम अजम शाकरी साहब को दी अजम शाकरी ग़ज़ल की दुनिया का जाना माना नाम जब पढ़ते हैं तो लगता है की सुनते ही चले जाया जाये उन्होंने अपनी ग़ज़ल में कुछ यूँ कहा....
"नज़र उठाके ज़रा देख शाने दरवेशी ,
अमीर लोग भी हैं झोलियाँ पसारे हुए ,


ये अंधी आँखें उजाले कहाँ तलाश करें,
चराग हैं जो अंधेरों से जंग हारे हुए "
दर्शक लगातार दाद से नवाजते रहे इसके बाद हिंदुस्तान के मशहूर ओ मारुफ़ शायर जनाब हसन काज़मी साहब की बारी आई और उन्होंने अपनी खुबसूरत आवाज़ में खुबसूरत शायरी से सामाइन को दाद देने को मजबूर कर दिया उन्होंने अपनी ग़ज़ल के हवाले से कहा कि
"खुबसूरत हैं आँखें तेरी रात को जागना छोड़ दे ,
खुद ब खुद नींद आ जाएगी तो मुझे सोचना छोड़ दे"
बारी आई सरवत जमाल साहब की तो उन्हें मंसूर उस्मानी साहब ने पुकारा और जब उन्होंने अपना कलम पढना सुरु किया तो पदमश्री जनाब बेकल उत्साही और ग़ज़ल के शहंशाह प्रोफेसर वसीम बरेलवी साहब ने उन्हें दादों तहसीन से तो नवाज़ा ही सामाइन भी दाद देने को मजबूर हो गए उन्होंने ग़ज़ल के हवाले से कुछ यूँ कहा 
कितने दिन, चार, आठ, दस, फिर बस
रास अगर आ गया कफस, फिर बस
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गयी उमस फिर बस
तेज़ आंधी का घर है रेगिस्तान
अपने खेमे की डोर कस, फिर बस
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
सब के हालात पर सजावट थी
तुम ने रक्खा ही जस का तस, फिर बस
थी गुलामों की आरजू, तामीर
लेकिन आक़ा का हुक्म बस, फिर बस
सौ अरब काम हों तो दस निकलें                        
उम्र कितनी है, सौ बरस, फिर बस
इसके बाद जब बारी आयेशहूर शायर जनाब अशोक साहिल साहब की तो उन्होंने अपने अंदाज़ में कुछ  यूँ कहा 
"बुलंदियों   पर पहुचना   कोई कमाल नहीं 
बुलंदियों  पर ठहरना   कमाल होता है
अब बारी आती है ब्लोगिंग और पत्रकारिता की दुनिया का जाना माना नाम आलोक श्रीवास्तव का  जिनकी ग़ज़लें आज पूरी दुनिया में धूम मचा रही हैं और जगजीत सिंह जैसे मशहूर ग़ज़ल सिंगर उनकी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दे रहे हैं उन्होंने अपने खुबसूरत अंदाज़ में एक से बढ़कर एक ग़ज़लें सुनकर सामाइन की वाह वाही लुटी उन्होंने कहा 
"तुम्हारे पास आता हूं तो सांसे भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है के' आंखें भीग जाती हैं।



तबस्सुम इत्र जैसा है, हंसी बरसात जैसी है,
वो जब भी बात करता है तो बातें भीग जाती हैं।

तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है,
तुम्हें जब गुनगुनाता हूं तो सांसें भीग जाती हैं।

ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है,
नए पत्तों की आमद से ही शाखें भीग जाती हैं।

तेरे एहसास की ख़ुशबू हमेशा ताज़ा रहती है,
तेरी रहमत की बारीश से मुरादें भीग जाती हैं।"
हिंदी जगत की मशहूर शायरा डॉ. सुमन दुबे ने कुछ इस अंदाज़ में सामें से दाद वसूल की 
नाखुदा हमी तो तेरे इश्क के मारे निकले ,
ग़र से निकले तो तूफ़ान के सहारे निकले 
ग़ज़ल का एक और जाना माना नाम इकबाल अशहर कुछ इस अंदाज़ में सामा इन की दाद लुटने आये और उन्होंने मुरादाबाद के सामा इन को दाद देने पर मजबूर कुछ इस अदा से किया 
"उसकी खुशबु मेरी ग़ज़लों में सिमट आई है ,
नाम का नाम है रुसवाई की रुसवाई है ,
सिलसिला ख़तम हुआ जलने जलने वाला 
अब कोई खुआब नहीं नींद उड़ाने वाला "
तंजो मिज़ा के बाकमाल शायर एजाज़ पोपुलर मेरठी साहब को जब दवाते सुखन दी गयी तो उन्होंने अपनी खुबसूरत शायरी से सामा इन को बार बार हसने को मजबूर कर दिया और सामा इन बार बार उन्हें बुलाते रहे उन्होंने क्या खूब क़तात और नज़्म पढ़ी जिससे सामा इन दाद देते रहे और मिज़ा का मज़ा लेते रहे
" कर गयी घर मेरा खाली मेरे सो जाने के बाद ,
  मुझको धड़का था कि कुछ होगा तेरे आने के बाद,
  मैंने दोनों बार थाने में लिखी थी रपट,
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद "
   
 मुशायरे की खुबसूरत निज़ामत कर रहे मंसूर उस्मानी साहब को उनका कलाम पढने के लिए जब अकील नोमानी साहब ने पुकारा तो पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा फिर मंसूर साहब ने शायरी के जलवे दिखाते हुए कहा कि 
"ज़िन्दगी भर की कमाई है ग़ज़ल की खुशबु, 
हमने मुश्किल से बचाई है ग़ज़ल की खुशबु,
मैंने जिस दिन से मोहब्बत का छुआ है दामन, 
मेरी साँसों में समाई है ग़ज़ल की खुशबु"
अपना कलाम पढने के बाद मंसूर उस्मानी साहब ने फिर निजामत के फ़रायज़ अंजाम देते हुए ग़ज़ल के बेताज बादशाह अकील नोमानी साहब को पुकारा तो एक बार फिर हाल तालियों की गडगडाहट से गूंजने  लगा उन्होंने बेहद खुबसूरत ग़ज़लें सुनाई उनका अंदाज़ तो देखिये 
"मुझमें कुछ है जो बदलने नहीं देता मुझको, 
एक मुद्दत से बदल जाने को जी चाहता है ,
रौशनी दिल में उतरती है तो जल जाते हैं,
कौन कहता है की जल जाने को जी चाहता है,
लाख मालूम हों झूठे दिलासे लेकिन ,
बाज़ औकात बहल जाने को जी चाहता है"
मैकश अमरोहवी ने अपने जलवे से सामा इन को कुछ इस तरह लुत्फ़ अन्दोज़ किया 
"हिफाज़त ग़र नहीं होती इमारत टूट जाती है ,
अगर शीशा शिकस्ता  है तो सूरत टूट जाती है "
लखनवी अंदाज़ में जब डॉ. नुजहत अंजुम साहिबा ने अपनी ग़ज़लों और गीत को पढ़ा तो उनके कलाम में नफासत और सच्चाई नज़र आई और सामा इन ने उनहूँ भरपूर दाद से नवाज़ा उनका अंदाज़े बयाँ कुछ इस तरह था 
"रस्मे वफ़ा निभाना तो ग़ैरत की बात है ,
वो मुझको भूल जाएँ ये हैरत की बात है ,
सब मुझको चाहते हैं ये शोहरत की बात है ,
मैं उसको चाहती हूँ ये किस्मत की बात है "
मुरादाबाद के शायर  जिनके २ मजमुए मंज़रे आम पर आ चुके हैं जनाब डॉ. मुजाहिद फ़राज़ साहब ने भी बेहद खुबसूरत कलाम सुनाये उन्होंने कहा की 
"जब भी सियाह रात का मंज़र सताएगा, 
कुछ जुगनुओं का साथ बहुत याद आएगा ,
आंधी  इस ऐतबार पर आई इस तरफ,
ये सिरफिरा चिराग कोई फिर जलाएगा"
इसके बाद बारी थी अपने अलग अंदाज़ के लिए पहचान  वाले डॉ. नवाज़ देवबंदी साहब की जिन्होंने अपने बेहतरीन कलाम सुनाकर सामा इन की दाद लुटी उन्होंने कहा कि
" सब्र को दरिया कर देते हैं आंसू रुसवा कर देते हैं,
ज़ख्म पे मरहम रखने वाले ज़ख्म को गहरा कर देते हैं,
रोशन जुगनू तेज़ हवा का नखरा ढीला कर देते हैं,
हम जिस जंगल से भी गुजरें उसको रस्ता कर देते हैं,
अह्लुल्लाह से मिलकर देखो अपने जैसा कर देते हैं"
अब मंसूर उस्मानी साहब ने जब ग़ज़ल के शहंशाह वसीम बरेलवी साहब को पुकारा तो पूरा हॉल एक बार फिर तालियों कि आग़ोश में चला गया उन्होंने कहा
"अगर हवाओं से लड़ना इन्हें नहीं आता ,
तो फिर लड़ाई चिरागों में होने लगती है "
उन्होंने फिर कहा 
"रात भर शहर कि दीवारों पे गिरती रही ओस ,
और सूरज को समंदर से ही फुर्सत न मिली "
वसीम साहब जब अपने निखर पर आये तो फिर ये अंदाज़ भी दिखाया 
"बिगड़ना भी हमारा कम न जानो,
तुम्हें कितना संभालना पढ़ रहा है "
इंतज़ार था कि पदमश्री जनाब बेकल उत्साही साहब का कि वो मुशायरे को उरूज अता करें और जब मंसूर साहब ने उनका नाम पुकारा तो सभी लोगों ने उठकर उनका इस्तकबाल किया और उन्होंने भी सामा इन कि पसंद का ध्यान रखते हुए अपने गीत और नज्मों से सामा इन कि दाद बटोरी उनके गीत कि बानगी देखिये 
"कातिल ये है वो मकतुल, एक शाख पे कोरा फूल,
अब जीने का यही उपाय , सबकी आँख में झोंको धुल, 
प्यार से जीत ले सारा जहाँ , इधर उधर क्यूँ है मशगुल"
रात के ४ बज रहे थे मुशायरा अपने आखरी लम्हात के जेरे साया था जब मंसूर उस्मानी साहब ने मुशायरा ख़तम होने को कहा ये खुबसूरत मुशायरा जिसमें सच्ची शायरी ही सुनी गयी और इसको शायरों ने भी दिल से पढ़ा इसी मुशायरे में मेरी मुलाक़ात मेरे शायर क्लब के २ दोस्त और दोनों ही साहिबे दीवान है जनाब जिया ज़मीर साहब advocate और डॉ. मुजाहिद फ़राज़ साहब से हुई 
  मरहूम मासूम नह्टोरी साहब की याद में इस मुशायरे को सयेद नूर उद्दीन साहब और उनके दोस्तों ने सजाया था इस मुशायरे में मैंने बहुत ज़िम्मेदारी से जनाब सयेद युसूफ साहब को भी देखा जिन्होंने बेहद महनत की और महमानवाजी की मिसाल कायम की मैं शुक्रगुज़ार हूँ मंसूर उस्मानी साहब और अकील नोमानी साहब का कि इस खुबसूरत महफ़िल से मैं भी लुत्फंदोज़ हुआ 
शुक्रिया दोस्तों
 

Tuesday 12 April 2011

मुशायरा मैनपुरी ९ अप्रैल २०११

९ अप्रैल २०११ को मैनपुरी के मुशायरे में (बाएं से दायें)
मैं (हादी जावेद) मंसूर उस्मानी साहब, सर्वत जमाल साहब, अकील नोमानी साहब 
(Admin group Of Shair Club)
१० अप्रैल २०११ को मैनपुरी के मुशायरे में जनाब मंसूर उस्मानी साहब , जनाब अकील नोमानी साहब और जनाब सरवत जमाल साहब तशरीफ़ लाये थे मैं भी इस मुशायरे मैं शामिल था तभी की खीची गए ये तस्वीर इतेफाक से हम चारों लोग facebook के ग्रुप शायर क्लब के admin हैं 

दोस्तों 
आदाब 
९ अप्रैल २०११ दिन शनिवार को जब मुझे जनाब मंसूर उस्मानी साहब के ज़रिये पता चला कि आज मैनपुरी में मुशायरा है और उसमें शिरकत करने के लिए अमेरिका से इशरत आफरीन साहिबा , वसीम बरेलवी साहब , अकील नोमानी साहब , डॉ. कैसर कलीम साहब , नुसरत मेहदी साहिबा , आलोक श्रीवास्तव साहब सर्वत जमाल साहब , मदन मोहन दानिश साहब, शरीफ भारती साहब, मेघा कसक साहिबा, मनीष शुक्ल साहब , वगेरा आ रहे हैं तो लगा की वाकई आज शायरी के हवाले से मुशायरे में बात होगी ] मैं मुशायरा सुनने मैनपुरी चल दिया
रात को जब मुशायरा गाह में पहुँचता हूँ तो लगा की हाँ आज मैं शायरी सुनने आया हूँ मैं पिछले २० सालों  से मुशायरा सुनता आ रहा हूँ लेकिन मैंने ऐसे मुशायरे बहुत कम सुने हैं जिसमें मुशायरेबाज़ी न हो चूँकि आगरा मंडल और मुरादाबाद के मुशायरों में शरीक होता रहा हूँ और ये दीवानगी की हद तक है की शायर न होते हुए भी मैं मुशायरा सुनने जाता हूँ 
मैनपुरी के मुशायरे की कमान हिरदेश सिंह साहब के हाथों में थी जिनके भाई जनाब पवन सिंह साहब I A S हैं और खुद भी ब्लॉगर हैं उनका लगाव इस हद तक देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ मुशायरे की सारी जिम्मेदारियां उन्होंने अपने ऊपर ओड रखी थी और बहुत कुशलता पूर्वक निभाया भी इस कामयाब मुशायरे की मैं उन्हें बधाई देना चाहता हूँ  जिस तरह उन्होंने अंतिम पढ़ाव यानि विदा करने तक की ज़िम्मेदारी खुद उठाई इस वाके ने मेरे दिल में उनके लिए बहुत इज्ज़त पैदा कर दी और मैं उनका ममनून हूँ की उन्होंने मैनपुरी से फिरोजाबाद तक के मेरे सफ़र को यादगार सफ़र बना दिया क्यूंकि उस दोरान मोहतरमा इशरत आफरीन साहिबा उनके खाविंद जनाब परवेज़ जाफरी साहब और मैं एक ही गाढ़ी में थे रास्ते की गुफ्तगू को मैं शायद नहीं भुला पाऊंगा..
इसके अलावा मुशायरे मैं बेहतरीन शायरी सुनने को मिली
इस बेमिसाल मुशायरे की बेहतरीन निजामत जनाब मंसूर उस्मानी साहब ने की मंसूर उस्मानी साहब किसी तारुफ़ के मोहताज नहीं हैं बैनुल अक्वामी तौर पर उर्दू जानने और मुशायरे के सामईन उन्हें बखूबी जानते हैं  उन्होंने मंच से जब मेरा तारुफ़ इन्टरनेट के हवाले से मेरे चैनल www.Youtube.com/hadijaved2006 और फेसबुक के मेरे ग्रुप शायर क्लब का करवाया तो मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ की उन्होंने मुझे इस लायक समझा
जनाब अकील नोमानी साहब ग़ज़ल के बेहतरीन शायर और उनका कलाम सुनिए तो लगता है की आँख बंद कर सुना जाये दिल की गहराइयों तक असर डालने वाला उनका कलाम दिल से ही सुना जाता है......
डॉ. कलीम कैसर साहब जो पिछले १० सालों से गणतंत्र दिवस पर होने वाले दुबई के मुशायरे को आयोजित करने में भूमिका निभाते रहे हैं उनका कलाम भी जैसे सर चढ़ कर बोलता है........
इस मुशायरे  की शानदार उपलब्धि जनाब सर्वत जमाल साहब का कलाम रहा उन्हें मैंने पहली बार किसी मुशायरे में सुना उन्हें पढने का इतेफाक मुझे ब्लॉग या नेट के द्वारा ही था लेकिन सुनने का मौक़ा जनाब पवन सिंह साहब के मुशायरे में हासिल हुआ जब वो पढ़ रहे थे तो जनाब वसीम बरेलवी साहब और इशरत आफरीन साहिबा ने खुद उन्हें मुबारकबाद दी जो काबिले तारीफ़ थी...
नुसरत मेहदी साहिबा उनका कलाम काबिले तारीफ़ होता है बेहतरीन लिखती हैं उन्होंने सामाइन का दिल खूब लुटा उन्हें मुबारकबाद 
मेघा कसक ग़ज़ल की दुनिया में अभी नयी हैं लेकिन अच्छा पढ़ती हैं उन्होंने बहुत खुबसूरत पढ़ा
मनीष शुक्ल साहब एक प्रशासनिक अधिकारी बहुत खुबसूरत कहते हैं बहुत अच्छा पढ़ा और खूब दाद लुटी उन्हें भी मुबारकबाद
आलोक श्रीवास्तव पत्रकारिता और ब्लॉग्गिंग की दुनिया का जाना माना नाम जब पढ़ते हैं तो फिर लगता है की उन्हें सुनते चले जाओ बेहद कामयाब रहे मुबारकबाद
मदन मोहन दानिश संजीदा लबो लहजे के बाकमाल शायर अपनी छटा बिखेरने पैर आ जाएँ तो क्या कहने मुबारकबाद
शरीफ भारती साहब हास्य की दुनिया का जाना माना नाम  बहुत कामयाबी हासिल की उन्होंने
वसीम बरेलवी साहब का तो हमेशा ही अंदाज़ सामाइन को छूता रहा है ......
 इशरत आफरीन साहिबा जो अमेरिका में रहकर उर्दू को फरोग दे रही हैं पाकिस्तान मूल की शायरा हैं उन्हें सामईन ने बेहद सराहा
वही पर सर्वत जमाल साहब ने मुझे पुष्पेंदर सिंह साहब से मुलाक़ात कराइ जो अच्छे ब्लोगेर हैं और बहुत अच्छा कहते हैं
कुल मिलकर एक बेहतरीन मुशायरा जिसमें मुझे शिरकत करने का शरफ हासिल हुआ पवन कुमार सिंह साहब और उनके परिवार का मुख्लिसना अंदाज़ मुझे बेहद पसंद आया मैं उनका ममनून हूँ और खुदा से दुआ करूँगा की मैनपुरी में ऐसे मुशायरे उनकी सरपरस्ती में आइन्दा भी होते रहें आमीन




Tuesday 5 April 2011

M (Hadi Javed) with Popular urdu poet Dr. Majid Deobandi



Allah mere rizk ki barkat na chali jaye
Do roz se ghar mei'n koi mehma'n nahi hai
(Dr. Majid Deobandi)

अल्लाह मेरे रिजक की बरकत न चली जाये 
दो रोज़ से घर में कोई मेहमान नहीं है 
(डा.माजिद देवबंदी )

"तुम्हें छू न सका"

"तुम्हें छू न सका"                                           "Tumhe'n Chhu Na saka"


खुले हुए आसमान में                                  Khule hue Aasma'n mein
चौदह दिनो की उम्र के                                 chaudah dino'n ki umar ke
भरपूर चाँद की अठखेली                              Bharpur chand ki athkheli
और उसकी आगोश में सिमटी चांदनी           Aur uski aaghosh mein simti chandni
यकबयक तुम्हारा अक्स बन कर                 Yakbayak tumhara aqs bankar
जब झिलमिलाने लगती है                           Jab Jhilmilane lagti hai
अँधेरे को चीरती हुई मेरी निगाह                   Andhere ko chirti hui meri nigah
तुम्हारे चेहरे पर जा टिकती है                      Tumahare chehre per ja tikti hai
फिर ये यकीन या गुमान और भी                 Phir ye yaqee'n ya guma'n aur bhi
पुख्ता होने लगता है कि                              Pukhta hone lagta hai ki
कायनात में मेरे और तुम्हारे सिवा              Kaynat mein mere aur tumhare siwa
कहीं कुछ भी तो नहीं                                  Kahi'n kuch bhi to nahi
साथ गुजरे लम्हों की महक                        Saath guzre lamho'n ki mahak
घुलने लगती है फिजाओं में                        Ghulne lagti hai fizao'n mei'n
फिर अचानक नज़र आता है                       Phir achanak nazar aata hai
सियाह अब्र का कोई टुकड़ा                         Siyah abr ka koi tukda
मेरी नज़र और                                           Meri nazar air
तुम्हारे अक्स के दरमियान                         Tumahare aqs ke darmiya'n
रह जाती है छटपटाती                                 Rah jati hai'n chhatpatati
अधूरी चाहत तुम्हे पाने की                          Adguri chahat tumhe'n paane ki
तुमको छूने की                                           Tumko chhune ki
लेकिन छू न सका                                       lekin Chhu na saka
फकत पसमंज़र से                                      Faqat pasmanzar se
हमेशा उभर आने वाले                                Hamesha ubhar aane waale
एक सियाह अब्र के टुकड़े के सबब               Ek siyah abr ke tukde ke sabab
कभी ये हो न सका                                      Kabhi ye ho na saka
तुम्हें छू न सका                                          Tumhe'n chhu na saka